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ग़ज़ल । स्वेटर

अशोक जमनानी जी द्वारा भेंट किये उनके कहानी संग्रह 'स्वेटर' को पढ़ा। पहली प्रतिक्रिया ... "बहुत बेहतरीन" ... हर कहानी एक से बढ़कर एक, सारे क़िरदार एक दम प्रभावी और जीवंत, सभी रसों से भरपूर ... भई मज़ा आ गया ... अशोक सर! 'स्वेटर' पढ़ने के बाद एक ग़ज़ल पेश है इस नाचीज़ की कलम से ... +ग़ज़ल+ बड़ी तारीफ़ के क़ाबिल लिखी हर इक कहानी है, किसी फ़नकार दिल की जैसे पैग़ामे-ज़ुबानी है। यहाँ पर मुख़्तलिफ़ किरदार में है ज़िन्दगी फैली; बुजुर्गो सा तज़ुर्बा और लफ़्ज़ों में जवानी है। कभी "लफ़्फ़ाज़" बनके ये तुम्हे बेहद हँसाती है, छुई जब "चीटियाँ वो लाल" तो आँखों में पानी है। "टिकिट" कहती भरोसा कर कि है इंसानियत ज़िंदा, "रंग" पढ़कर लगा यूँ आज फिर होली मनानी है। यहाँ जज़्बात औ हालात जो हर बात में शामिल, यही "स्वेटर" की रेशे रेशे में बुन दी कहानी है। ~ आतिश